आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः

संक्षिप्त में वर्णन।

श्रीमद् भागवत गीता के छठे अध्याय में, भगवान कृष्ण ने आत्मसंयम और आत्मनिग्रह के मार्ग का वर्णन किया है। उन्होंने मन की निग्रह की महत्ता बताई है और समझाया है कि शरीर में जो इंद्रियाँ हैं, उनके संयम से ही संतोष, शांति और मन की स्थिति का संज्ञान होता है। यहां आत्मसंयम और आत्मनिग्रह के फायदे, मानव जीवन में इसकी महत्ता, और अन्तरात्मा को प्राप्ति के लिए इसकी आवश्यकता पर चर्चा की गई है।

जरूर, गीता के इस अध्याय में, भगवान कृष्ण ने आत्मसंयम और मानव जीवन में आत्मनिग्रह के महत्त्व को बताया है। वे मन, इंद्रियों और शरीर के संयम के माध्यम से आत्मा को प्राप्ति के लिए संदेश देते हैं। इस अध्याय में आत्मसंयम की अनुपम उपयोगिता, इंद्रियों के वश में करने का मार्ग और उनका मानव जीवन में महत्त्व बताया गया है।

भागवत गीता के छठे अध्याय को यथार्थ रूप में मूल स्वरूप में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। यहां पर आपको गीता के छठे अध्याय का संस्कृत और उसका हिंदी अनुवाद मिलेगा। 

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