संक्षिप्त में वर्णन।
श्रीमद् भागवत गीता के तीसरे अध्याय में भगवान कृष्ण ने कर्मयोग की और विस्तार से बात की है। उन्होंने यहां प्रकृति, कर्म, और उनके फलों के बारे में बताया है। कर्मयोग के माध्यम से व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी फल की आकांक्षा छोड़ने की सलाह दी है। यहां कर्म का महत्त्व, अनासक्ति, और कर्मों के योग्य तरीके से करने की बात की गई है।
श्रीमद् भागवत गीता के तीसरे अध्याय में, भगवान कृष्ण ने कहा कि मनुष्य को कर्म करते समय भी फल की आशा छोड़नी चाहिए। वे समझाते हैं कि कर्म का सामर्थ्य, कर्मफल के अनुसार नहीं, बल्कि कर्म के अनुष्ठान से आता है। भगवान कृष्ण ने इस अध्याय में ज्ञान, कर्म और भक्ति के महत्त्व को बताया है और यह भी समझाया है कि कर्मयोग से अधिकतम सम्बंध रखना चाहिए।
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