संक्षिप्त में वर्णन।
भगवद् गीता का प्रथम अध्याय ‘अर्जुन विषाद योग’ के नाम से जाना जाता है। यह अध्याय महाभारत युद्ध के प्रारंभ में भगवान् कृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद को विविध रूपों में वर्णित करता है।
अर्जुन युद्धभूमि में अपने दोनों पक्षों के सम्बंधित और प्रियजनों को देखकर दुविधा और शंका में डूबा हुआ है। उसके मन में युद्ध के प्रति वैराग्य और विवेक की अभावना है।
इस अध्याय में अर्जुन का युद्ध स्थिति में अवसाद, दुःख, और असमंजस्या का वर्णन है। उसकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति को देखते हुए वह युद्ध क्षेत्र में कर्तव्य का अनुभव नहीं कर पा रहा है।
भगवान् कृष्ण इस मामूली जीवनी की असमर्थता को समझकर अर्जुन को समझाते हैं और उन्हें उच्चतम ज्ञान और कर्मयोग की ओर प्रेरित करते हैं। इस अध्याय में मानवीय दुविधाओं और धर्म संबंधी संकटों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
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