संक्षिप्त में वर्णन।
श्रीमद् भागवत गीता के आठवें अध्याय में, भगवान कृष्ण ने अमृतत्व की प्राप्ति के मार्ग के बारे में बताया है। इस अध्याय में उन्होंने अमृतत्व के द्वार के रूप में देवीद्वारका की महिमा और उसके महत्त्व को विवरण में दिया है। भगवान ने जीवों की मुक्ति के लिए ध्यान और उनके द्वारका में समर्पण का मार्ग बताया है। उन्होंने संसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए उच्चतम परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग बताया है।
गीता के आठवें अध्याय में भगवान कृष्ण ने अमृतत्व की प्राप्ति के लिए विभिन्न ध्यान योगों की महिमा बताई है। उन्होंने ध्यान के माध्यम से उच्चतम परमात्मा को प्राप्त करने के विभिन्न मार्गों का वर्णन किया है। इस अध्याय में विभिन्न योगों के फलों और उनके साधनों की चर्चा की गई है, जिनसे जीवन में स्थिरता, संतोष और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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अक्षर ब्रह्मयोगो नामाष्टमोऽध्यायः (soul2growth.blogspot.com)