ज्ञानकर्मसंन्यास योगो नाम चतुर्थोऽध्यायः

संक्षिप्त में वर्णन।

श्रीमद् भागवत गीता के चौथे अध्याय में, भगवान कृष्ण ने ज्ञान की महिमा और भक्ति के महत्त्व को बताया है। वे कहते हैं कि ज्ञान से भी उच्च और परिपूर्ण भक्ति होती है, जो सभी कर्मों को शुद्ध और सर्वोत्तम बना देती है। इस अध्याय में कर्म का अर्थ, भक्ति का मार्ग, और ज्ञान की महिमा को समझाया गया है। भगवान ने भक्ति के अलग-अलग प्रकार और उनकी महत्ता पर भी चर्चा की है।

गीता के इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने ज्ञान के महत्त्व को बताया है और यह समझाया है कि ज्ञान के बिना कोई भी कर्म निष्फल होता है। वे इस अध्याय में कर्म, ज्ञान, और भक्ति के तीनों के महत्त्व को समझाते हैं, और उन्हें एक संतुलित जीवन जीने की सलाह देते हैं। भक्ति के माध्यम से जगत का सम्पूर्ण भला कर सकते हैं और भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।

भागवत गीता के चौथे अध्याय को यथार्थ रूप में मूल स्वरूप में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। यहां पर आपको गीता के चौथे अध्याय का संस्कृत और उसका हिंदी अनुवाद मिलेगा। 

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