दैवासुरसम्पद्विभागयोगो नाम षोडशोऽध्यायः

संक्षिप्त में वर्णन।

भगवद् गीता के 16वें अध्याय में भगवान कृष्ण ने दैवी सम्पदा और आसुरी सम्पदा के बारे में बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि दैवी सम्पदा में गुणों का उच्च स्तर होता है जैसे की त्याग, सत्य, शांति और क्षमा। वहाँ त्रिवार्ती स्वर्ग, मोक्ष और परमगति की प्राप्ति होती है। विपरीत, आसुरी सम्पदा में अहंकार, क्रोध, लोभ और अनैतिकता जैसे दोष होते हैं। इस अध्याय में यह भी बताया गया है कि जीवन में किस प्रकार के गुणों का चयन करना है और उससे कैसे हमारा चित्त और व्यवहार प्रभावित होता है।

इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने समाज में धर्म की महत्ता और धर्मात्मा व्यक्तियों का महत्त्व बताया है। वे यह स्पष्ट करते हैं कि धर्मात्मा व्यक्ति कैसे अपने आचरण और व्यवहार से समाज में सद्गुणों का प्रसार करता है और उसका समाज में महत्त्व होता है। वे बताते हैं कि समाज में धर्मात्मा व्यक्ति न केवल अपने बल्कि अन्यों के लिए भी प्रेरणा स्रोत होता है और उसकी संस्कृति और समृद्धि में योगदान करता है।

इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने आसुरी सम्पदा के दोषों का वर्णन किया है और यह स्पष्ट किया है कि उन दोषों से बचकर ही मनुष्य सच्ची सफलता और सुख को प्राप्त कर सकता है। वहाँ बताया गया है कि आसुरी सम्पदा के लक्षणों से परहेज़ करना ही व्यक्ति को सच्ची खुशियों और आनंद की दिशा में ले जाता है।

भागवत गीता के 16वें अध्याय को यथार्थ रूप में मूल स्वरूप में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। यहां पर आपको गीता के 16वें अध्याय का संस्कृत और उसका हिंदी अनुवाद मिलेगा। 

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