संक्षिप्त में वर्णन।
भगवद् गीता के बारहवें अध्याय में, भगवान कृष्ण ने भक्ति के विभिन्न प्रकारों और उनके फलों का वर्णन किया है। इस अध्याय में वे बताते हैं कि भक्ति में समर्पण के कितने ही रूप होते हैं और हर एक रूप का अपना विशेष महत्त्व है।
भगवान ने यहां अलग-अलग प्रकार की भक्ति जैसे अनासक्त भक्ति, सांख्यभक्ति, गुणातीत भक्ति, वास्तविक भक्ति आदि के विषय में चर्चा की है। भगवान ने स्पष्ट किया है कि चाहे भक्ति का कोई भी रूप हो, वह भक्ति ईश्वर की प्रीति, समर्पण और अनुराग से भरा होना चाहिए।
इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने भक्ति के माध्यम से ईश्वर के प्रति प्रेम की महत्ता को समझाया है और यह भी बताया है कि भक्ति द्वारा ही मुक्ति की प्राप्ति संभव होती है।
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