संक्षिप्त में वर्णन।
भगवद् गीता के 18वें अध्याय में भगवान कृष्ण ने कर्म, त्याग, और संन्यास के विषय में बताया है। वे यह समझाते हैं कि सच्चे त्याग के साथ कर्म करना ही सबसे श्रेष्ठ है। कर्म विनाशकारी नहीं होता, बल्कि वह हमें सही दिशा में ले जाता है अगर हम उसे उच्च आदर्शों के साथ करें। उन्होंने संन्यास को समझाया है, जो जीवन में बिना आसक्ति के कर्म करने का अर्थ है।
इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने चार वर्णों की उत्तमता का वर्णन किया है। वे यह बताते हैं कि वर्णों के द्वारा समाज में विभिन्न प्रकार के कार्यों का सम्भावनानुसार विभाजन होता है, जो समाज की समृद्धि और समानता को बनाए रखता है। इससे समाज में सामाजिक और आर्थिक संतुलन बना रहता है और सभी वर्णों के लोगों का उत्तम जीवन जीने में सहायता मिलती है।
अध्याय 18 में भगवान कृष्ण ने विभिन्न प्रकार के त्याग और कर्मों के महत्त्व को समझाया है। उन्होंने यह बताया है कि अच्छे त्याग और सही कर्म ही हमें सच्ची मुक्ति और शांति की दिशा में ले जाते हैं। इस अध्याय में भगवान ने हमें अच्छे कर्मों का अनुष्ठान करने का संदेश दिया है जो हमें धर्म और सच्चाई की दिशा में ले जाते हैं।
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मोक्षसन्न्यासयोगो नामाष्टादशोऽध्यायः (soul2growth.blogspot.com)