सांख्ययोगो नाम द्वितीयोऽध्यायः

संक्षिप्त में वर्णन।

भगवद् गीता के दूसरे अध्याय में अर्जुन अपने कर्तव्य के प्रति विस्मित और दुःखी हैं क्योंकि वे अपने निजी भावनाओं की वजह से युद्ध करने के लिए तैयार नहीं हैं। वह अपने शिक्षकों, पिताओं, और सजनों को नाश करने के लिए इस युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं। इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने अर्जुन के विवादों को सुलझाने के लिए ज्ञान का प्रदान किया है।

इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के वास्तविकता का ज्ञान दिया है और उन्हें युद्ध में भाग लेने के लिए प्रेरित किया है। वे यह बताते हैं कि कर्तव्य का पालन करना बहुत महत्त्वपूर्ण है, चाहे फिर वह कोई भी कार्य क्यों ना हो। जीवन में यदि हम कर्तव्य की ओर ध्यान देते हैं, तो हमें सही दिशा में चलने का मार्ग मिलता है।

इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपने कर्तव्य का पालन करने की महत्ता को समझाया है। वे यह बताते हैं कि व्यक्ति को उसके कर्तव्य का पालन करना चाहिए, जो कि उसके धर्म से और उसके आदर्शों से मिलता है। जीवन में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने से ही हम अच्छे कर्म करते हैं और सही मार्ग पर चलते हैं।

भागवत गीता के दूसरे अध्याय को यथार्थ रूप में मूल स्वरूप में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। यहां पर आपको गीता के दूसरे अध्याय का संस्कृत और उसका हिंदी अनुवाद मिलेगा।

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