कैसे जाने कि हमारा प्रेम निस्वार्थ और सच्चा है?

PINTU SINGH 1 February 2020 

सच्चा और निस्वार्थ प्रेम क्या है और कैसा होता है? यह सवाल पूछना जितना आसान है उसका उत्तर देना उतना ही कठिन। क्योंकि भावनाओं को और एक सुखद अहसास को शब्दों में लिख पाना बहुत कठिन है।  

अगर कोई कहे कि मैं सच्चे प्रेम को जैसा है वैसे का वैसा बता सकता हूं तो यह बात बिल्कुल वैसे ही है जैसे कोई कहे कि मैं भगवत गीता को वैसे का वैसा समझा सकता हूं। जैसा कि श्रीकृष्ण ने समझाया था। यहां मैं भागवत गीता की बात नहीं करने जा रहा लेकिन जिस प्रेम की व्याख्या में करने जा रहा हूं। उसके हीरो के रूप में आप श्री कृष्ण जी को और राधा जी को हीरोइन के रूप में कल्पना कर सकते हैं। मैं द्वापर युग के प्रेम की बात नहीं कर रहा मैं आज के प्रेम की बात करने वाला हूं , 

 

मैं आपके सामने सच्चे और निस्वार्थ प्रेम को वैसे क्या वैसा बताने की कोशिश करूंगा जैसा वह है वह भी बहुत सरल शब्दों में। 

प्रेम शब्द का अर्थ?:–  निस्वार्थ और सच्चे प्रेम के बारे में जानने से पहले प्रेम शब्द का अर्थ जान लेना उचित होगा, प्रेम केवल एक शब्द नहीं यह एक संग्रहालय है भावनाओं का समर्पण का त्याग का। प्रेम भावनाओं के समंदर में निस्वार्थ भाव से खुद को समर्पित करने का नाम है।  

प्रेम, योग और भक्ति एक ही भावनाओं के या क्रिया के अलग-अलग नाम है। प्यार एक ऐसा समंदर है जिसमें इंसान डूबना चाहता है उसे तैर कर पार करना नहीं। सच्चे प्रेम को पा लेने के बाद और कुछ पाने की इच्छा नहीं रह जाती अंतरात्मा में। 

एक बहुत प्रचलित कहावत है , प्यार कभी पूरा नहीं होता क्योंकि प्यार का पहला अक्षर ही अधूरा होता है। इस कहावत को लोग जैसा समझते हैं वैसा यह है नहीं यह मैं बताता हूं आपको क्यों? जब तक आप को प्रेम नहीं होता प्रेम अधूरा ही होता है। जब आपका साथी या प्रेमी आपको मिलता है तो दो लोग मिलकर प्रेम को पूरा करते हैं। यानी प्रेम हुए बिना अधूरा है प्रेम हो जाने के बाद पूरा ही है वह। लोगों ने इस कहावत में पूरा का पूरा इमोशन उसके शब्द पर रख दिया है। जबकि यह उचित नहीं है प्रेम प्यार यह एक भावनाओं से जुड़ा शब्द है। इसे इस तरह से 1 शब्द  के ऊपर रख कर कह देना उचित नहीं है। जिस भी किसी के पास प्रेम होता है वह कभी अधूरा हो ही नहीं सकता क्योंकि प्रेम के मिल जाने के बाद कुछ और पाने की इच्छा रही नहीं जाती। 

निस्वार्थ शब्द का अर्थ।:– जब कोई घटना या कार्य बिना किसी इच्छा और व्यक्तिगत लाभ के घटता है या किया जाता है तो उसे निस्वार्थ भाव से किया हुआ कार्य कहते हैं। और सच कहूं तो यह कार्य या घटना किया नहीं जाता है यह अपने आप ही हो जाता है या घटित हो जा।  

जिस समय आपको कुछ चाहिए नहीं होता लेकिन आप हर समय उसके साथ रहना चाहते हो तब यह समझ लेना कि आपका जो प्रेम है वह निस्वार्थ प्रेम है। जिस समय आप उन्हें पाना नहीं लेकिन खुद को उन में खो देने की इच्छा रखते हो तो समझ जाना आपका प्रेम निस्वार्थ प्रेम है। 

प्रेम और मोह में क्या अंतर है इसे जाने?:-  
  • प्रेम एक शक्ति का स्रोत है और मोह दुर्बलता का सागर। 
  • प्रेम जीवन साथी के लिए जीना सिखाता है, मोह  दूसरों को चाहता है कि वह मेरे लिए जिए। 
  • प्रेम स्वतंत्रता का भाव है , और मोह उलझनओ से भरा हुआ बंदिश का स्वरूप है। 
  • प्रेम से जीवन में सकारात्मक प्रकाश का संचार होता है, और मोह से जीवन में नकारात्मक ऊर्जा या अंधकार का संचार होता है। 
  • प्रेम कभी कुछ मांगता नहीं वह तो समर्पण का एक रूप है, मोह स्वार्थ और काम से भरा हुआ वह सिर्फ मांगता है वह देना नहीं जानता। 
  • प्रेम हमेशा दिल से होता है और मोह हमेशा दिमाग से। 
  • प्रेम को कोई नहीं छीन सकता या तोड़ सकता है मोह बड़ी आसानी से तोड़ा और छिन जाता है। 
  • प्रेम में आप अपना वर्चस्व अपने साथी को देते हैं और मोह में आप अपने साथी पर वर्चस्व करना चाहते हैं। 
  • प्रेम जहां होता है वहां और कुछ हो ही नहीं सकता किसी और भावनाओं के लिए कोई जगह होता ही नहीं मोह लालच, वर्चस्व और काम का मिलाजुला भाव है और यह मोह हमेशा भावनाओं के झुंड में रहता है। 
  • सच्चे प्रेम के मिल जाने पर और कुछ मिलना बाकी नहीं रह जाता मोह, लालच का पेट कभी बड़ा है जो कभी वह संतुष्ट होगा। 
  • सच्चे प्रेम की मिल जाने पर इस धरती पर ही आपको स्वर्ग मिल जाता है। आप स्वर्ग को प्राप्त हो जाते हैं मोह, लालच को प्राप्त हो जाने पर यह तो साक्षात नर्क का द्वार ही है। 
  • प्रेम का अस्तित्व नहीं मिल सकता और मोह का कोई अस्तित्व होता ही नहीं। 

वैसे तो प्रेम और मोह में बहुत बारीक अंतर होता है इसलिए इन दोनों में अंतर को पहचानना थोड़ा कठिन हो जाता है। पर प्रेम सच्चा होगा तो वह एक ना एक दिन आपको अंतर जरूर पता चलेगा। 

हमने प्रेम क्या होता है? यह जान लिया निस्वार्थ क्या होता है? यह भी जान लिया और प्रेम और मोह में क्या अंतर है यह भी जान लिया अब बात आती है कि सच्चा और निस्वार्थ प्रेम क्या है और इसका स्वरूप कैसा है? ठीक है चलिए हम और आप मिलकर इसे भी जानने का प्रयास करते हैं। 

सच्चा और निस्वार्थ प्रेम भक्ति की तरह होता है बस इसमें अंतर इतना होता है कि इसमें दोनों ही भक्त होते हैं और दोनों ही एक दूसरे के भगवान भी।  

जब आप उस एक प्यार को पाने के लिए अपना सब कुछ खोने को तैयार हो जाए तब समझ लेना यह प्यार सच्चा है। क्योंकि प्रेम ही एक ऐसा भाव है जिसके प्राप्त हो जाने पर और कुछ पाना बाकी रह ही नहीं जाता तो संसार के अन्य सुख को त्याग देना बहुत ही आसान हो जाता है। 

जब आपका मन और आत्मा यह मानने को तैयार हो जाए की अब मुझे उसके प्रेम के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। जब आपके मन में उसे खोने के अलावा और किसी भी चीज का डर ना हो तब समझ लेना यह प्रेम सच्चा है। 

जिस समय आप इस दुनिया का सारा सुख उस एक प्रेम में देखें जिस समय आप अपने सारे सपने को उस एक प्रेम के मिल जाने पर पूरा होता हुआ देखें तब समझ लेना यह प्रेम सच्चा है। 

जिस समय उस एक प्रेम के साथ होने पर आप अपने आप को पूर्ण महसूस करें महसूस करें और उस एक प्रेम के दूर चले जाने पर खुद को अधूरा महसूस करें तब समझ लेना यह एक सच्चा प्रेम है। 

जिस समय आप अपने प्रेम को पूर्ण स्वतंत्रता दें और साथ ही साथ उसे खोने का डर भी ना हो जिस समय आपका विश्वास और समर्पण किसी भी बात या  प्रॉब्लम से परेशान होकर अपने प्रेम से ना हटता हो तब समझ लेना या पेंट सच्चा है। 

जीवन के किसी भी परिस्थिति में आपको आपका प्यार खूबसूरत और मन को सुकून देने वाला लगता हो तब समझ लेना यह सच्चा प्रेम है।  

अगर सच्चे और निस्वार्थ प्रेम को पाना है तो मन को खाली करना होगा अपनी इच्छा अपना सुख सब कुछ त्यागना होगा, अपने मन से व्यापार हटाना होगा तभी सच्चा और निस्वार्थ प्रेम मिलेगा। 

प्रेम विधाता की सबसे सुंदर रचना है, सिर्फ कह देने से प्रेम नहीं होता अपने कर्तव्यों का भी पालन करना होगा। प्रेम संसार का सबसे सुंदर और पवित्र बंधन है, सच पूछो तो यह जो प्रेम है ना वह संसार के सारे बंधनों से मुक्ति है। 

यदि कोई आपका प्रेम ठुकरा दे आपके प्रेम को समझ ही ना पाए, तो क्या होगा? कुछ निराश हो जाएंगे तो कुछ धोखे से प्रेम को पाना चाहेंगे। पर यह आवश्यक नहीं कि जिससे आप प्रेम करते हो उसे भी आपसे प्रेम हो क्योंकि प्रेम कोई वस्तु नहीं छल या बल से अपने वश में कर ले।  

क्योंकि प्रेम वह शक्ति है जो आपके लिए संसार के सारे बंधन तोड़ सकती है, पर स्वयं किसी बंधन में नहीं बंधती। तो आप जिससे भी प्रेम करते हो उसे स्वतंत्र छोड़ दीजिए क्योंकि स्वतंत्रता ही हर जीव को बहुत प्रिय है। अगर प्रेम सच्चा होगा तो उसे अवश्य समझ आएगा और वह लौट कर जरूर वापस आएगा तब तक इंतजार और निस्वार्थ भाव से प्रेम कीजिए। 

।राधे कृष्णा। ।राधे कृष्णा। ।राधे कृष्णा। ।राधे कृष्णा। ।राधे कृष्णा।