यह किया तो खत्म हो जाएगा दुख आपके जीवन से

यह किया तो खत्म हो जाएगा दुख आपके जीवन से! 

If this is done, the misery will end in your life. 

by PINTU SINGH on February 04

इस बहुमूल्य चर्चा को शुरू करने से पहले हमें यह जान लेना बहुत जरूरी है कि दुख है क्या? क्योंकि इस जीवन से दुख नाम के शब्द को खत्म करना है तो इसके बारे में जानना जरूरी है। 

दुख (Sadness) 

दुख यानी क्या जब भी हमारे अंदर या हमारे प्रिय जनों के अंदर किसी भी चीज को पाने की इच्छा या किसी भी कार्य करने की इच्छा उत्पन्न होती है, और उस इच्छा को हम पूरा करना चाहते हैं और उस कोशिश में हम असफल हो जाते हैं तो हमें दुख की अनुभूति होती है हमारे अंदर दुख की भावना उत्पन्न होती है। इस अनुभूति या भावना को हम दुख कहते हैं। 

इसमें कोई दो राय नहीं कि वह इच्छा प्रेम की हो सकती है, सफलता के लिए हो सकती है या किसी अन्य वस्तु के लिए भी हो सकती है, या किसी अन्य कारणों से भी दुख हो सकता है। 

सुख (Happiness) 

सुख यानी क्या? जब भी हमारे अंदर कोई इच्छा उत्पन्न होती है क्या हमारे प्रिय जनों के अंदर कोई इच्छा उत्पन्न होती है, और हम उस इच्छा या कार्य को पूरा करना चाहते हैं और हम उस इच्छा को पूरा कर पाते हैं तो हमारे अंदर सुख की अनुभूति होती है सुख की भावना उत्पन्न होती है उस अनुभूति या भावना को हम सुख कहते हैं। 

दुख और सुख की परिभाषा से हमें यह तो अवश्य ज्ञान हो गया कि भावना यानी फीलिंग ही सुख और दुख का कारण है। अगर भावनाएं अच्छी होंगी तो सुख की अनुभूति होगी अगर भावनाएं गलत होंगी तो हमें दुख की अनुभूति होगी।  

इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी इच्छाएं जो है उसे पूरा करने की कोशिश हमारे हाथ में है, पर उस कोशिश में हमें सफलता मिलेगी या असफलता वह हमारे हाथ में नहीं है  पर हमारे हाथ में हमारे बस में उससे उत्पन्न होने वाली भावनाएं जरूर है। अगर हम अपने अंदर उत्पन्न होने वाली भावनाओं पर नियंत्रण कर ले तो जीवन से दुख शब्द ही निकल जाएगा। 

अब सवाल उठता है कि हम अपनी भावनाओं को कैसे काबू में करें या नियंत्रित करें जिससे हमें दुख की अनुभूति वाली भावनाओं से छुटकारा मिल जाए। किसी भी कार्य को चालू करने से पहले खुद को अपनी भावनाओं को इस तरह तैयार करना होगा कि सफलता मिले या असफलता मैं नहीं उलझना है। सफलता या असफलता को समान मानकर मैं मेरा कार्य को पूरी ईमानदारी से करूंगा, उसके बाद जो भी परिणाम आए मैं उसे खुशी-खुशी अपना लूंगा। क्योंकि किसी भी कार्य को करना मेरे बस में है पर उसके परिणाम पर मेरा कोई बस नहीं।  

यह संसार का नियम है कि जब भी पूरी इमानदारी से आप अपना कार्य करते हैं तो आपको सक्सेस जरूर और जरूर मिलती है। 

वह इंसान कभी दुखी नहीं हो सकता जिसके लिए जिसके लिए सुख की भावना और दुख की भावना एक समान है। वह इंसान कभी दुखी नहीं हो सकता जिसके लिए मान और अपमान दोनों ही एक समान है। ऐसे पुरुष को हमारे धर्म शास्त्र में योगपुरुष कहा गया है। जो पुरुष कर्म से उत्पन्न होने वाले फल के आधीन या उसके भावनाओं के अधीन नहीं होता वहीं पुरुष वहीं पुरुष कर्मयोगी पुरुष है। 

वैसे भी हमें अच्छी और बुरी भावनाओं मे के जाल में क्यों उलझना है? जबकि हम यह जानते हैं कि हमारे बस में केवल कर्म करना है उसके परिणाम नहीं। जो हमारे बस में है ही नहीं उस चीज के लिए क्यों दुखी होना? 

दुख नाम की कोई चीज है ही नहीं बस हमें अपने सोचने के नजरिए को बदलना होगा। आप देखना जिस दिन आपने अपने सोचने के नजरिए को बदल लिया उस दिन आपके जीवन से यह दुख शब्द निकल जाएगा। 

आप ही सोच कर देखो जिस पर हमारा बस ही नहीं है उसके लिए दुखी होना क्या सही है? जो हमारे बस में है उसे हमने पूरी ईमानदारी से निभाया फिर दुखी क्यों हो ना। जिस भी कार्य के लिए मैं जिम्मेदार था मैंने उसे पूरी जिम्मेदारी से निभाया, पर उसके परिणाम के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं। फिर मैं उसके लिए दुखी क्यों हूं? आगे जो होना है वह नियति अपने आप कर लेगी। 

जीवन में ऐसा कोई भी पल नहीं जिस समय हम कोई कार्य किए बिना रहते हो और जो हर पल करना है उस पर अपनी खुशियों को रखना क्या सही है? कोई भी हर समय जीत नहीं सकता उसे हारना भी होगा  और हारे तो दुखी होंगे, ऐसे तो पूरे जीवन दुखी रहना पड़ जाएगा। जबकि हम इस बात को जानते हैं तो क्यों नहीं हम अपनी खुशियों को इनसे हटा कर उस पर आधारित करते हैं जिस पर हमारा बस है। ईमानदारी से किया हुआ प्रयास हमारे बस में है तो हम अपनी खुशियों को इस पर क्यों ना आधारित करें 

और अंत में हमारी सोच ही हमारे सुख और दुख का कारण है। सोच बदल कर देखो अपने सोचने का नजरिया बदल कर देखो, सुख और दुख के जाल से निकल जाओगे और हर समय रहने वाली शांति को प्राप्त होंगे और इस दुनिया में मन की शांति से बड़ा सुख और कोई है ही नहीं। यह जो शांति है उसके लिए कुछ करने की या कहीं ढूंढने की जरूरत नहीं है यह आपके बहुत पास यानी आपके अंदर ही है। बस जरूरत है अपने सोचने के नजरिए को बदलने की। 

आगे सब राधे कृष्ण भला ही करेंगे विश्वास कीजिए सब अच्छा ही होगा। 

।।राधे कृष्णा।। ।।राधे कृष्णा।।।।राधे कृष्णा।।।।राधे कृष्णा।।।।राधे कृष्णा।।।।राधे कृष्णा।।।।राधे कृष्णा।।