By pintu singh
परिचय
प्यार एक ऐसा शब्द है जिससे कोई भी इंसान अछूता नहीं है हमारे मानव समाज का मुख्य आधार यह प्रेम ही पृथ्वी पर जितनी प्रजातियां हैं उनमें से कोई भी प्रेम से अछूता नहीं है प्रेम को ईश्वर का स्वरूप भी कहा गया है और इसे सुख का मूल आधार भी कहा गया है सुख और शांति का सीधा संबंध प्रेम से है इसलिए हमें प्रेम के बारे में जानना इतना आवश्यक हो जाता है।
मुख्यतः प्रेम के दो प्रकार
- शुद्ध प्रेम।
- अशुद्ध प्रेम (मिलावट वाला प्रेम।)
- शुद्ध प्रेम।
शुद्ध प्रेम को सरल भाषा में एक मासूम प्रेम कह सकते हैं क्योंकि शुद्ध प्रेम के अंदर किसी प्रकार का कोई मिलावट नहीं होता है हां यह बात सत्य है कि हम जिन लोगों से मिलते हैं या जो हमारे साथ रिलेशन में है हम उन सब से प्यार करते हैं, पर उन सबके लिए हमारा प्रेम शुद्ध हो ऐसा नहीं होता।
शुद्ध प्रेम यानी एक ऐसा प्रेम जिसमें डर की मिलावट ना हो, जिसमें लाभ और हानि भरी सोच की मिलावट ना हो जिसमें स्वार्थ भरी शर्तों की मिलावट ना हो जिसमें परिस्थितियों की मिलावट ना हो जो हर समय हर घरी एक समान हो , एक आपके होने से ही जिसे सुख का पूर्णता आभास होता हो और एक आपका होना ही जिसे पूर्ण होने का आभास कराता हो,आपके साथ मिला हरसुख सहज ही अपना लेता हो और आपके बिना जो सुख मिले उसे सहज ही त्याग देता वह प्रेम शुद्ध प्रेम है।
इस तरह का प्रेम सच में बहुत दुर्लभ है ऐसे प्रेम के मिल जाने पर इंसान के जीवन से दुख का नाश हो जाता है उस इंसान को इस धरती पर ही स्वर्ग और मुक्ति की अनुभूति होती है।
जो प्रेम हृदय से किया जाए वही सच्चा प्रेम है। मस्तिष्क से तो सिर्फ व्यापार होता है।
अशुद्ध प्रेम (मिलावट वाला प्रेम।)
वह प्रेम जो प्रेम जैसा आभास तो देता हो पर जिसमें डर की मिलावट हो, जिसमें लाभ और हानि भरी सोच की मिलावट हो जिसमें स्वार्थ भरी शर्तों की मिलावट हो जिसमें परिस्थितियों की मिलावट हो आपके होने या ना होने से जिसे कोई फर्क न पड़ता हो जिसका सुख सांसारिक और भौतिक चीजों पर आधारित हो जो आपके होने पर भी अपने आप को अपूर्ण महसूस करता हो जो हर समय विचलित और अशांत रहता हो जिसका प्रेम समर्पण और त्याग से नहीं कुछ पाने की इच्छा से होता हो ऐसा प्रेम अशुद्ध प्रेम है। इस तरह का प्रेम मस्तिष्क से किया जाता है और मस्तिष्क से किया हुआ प्रेम पाप ही होता है।
इस तरह का प्रेम बहुत सरलता से प्राप्त हो ऐसे प्रेम के मिल जाने से इंसान हमेशा दुखी और अशांत रहता है।और जीवन में हमेशा सुख के लिए संघर्ष करता रहता है और उसे सुख कभी प्राप्त भी नहीं होता।
जय श्री राधे कृष्णा।