एक अबोधबालक से कॉरपोरेटर बनने की सीख

एक​​ अबोधबालक​​ से​​ कॉरपोरेटर​​ बनने​​ की​​ सीख।

जी​​ हां​​ दोस्त​​ मैं​​ उसकी​​ बात​​ कर​​ रहा​​ हूं​​ जिससे​​ लोग​​ कुछ​​ नहीं​​ सीखते।​​ लेकिन​​ कामयाबी​​ का​​ सबसे​​ बड़ा​​ राज​​ तो​​ उन्हीं​​ में​​ छिपा​​ है​​ बस​​ देखने​​ की​​ जरूरत​​ है।

by PINTU SINGH 4 November 2019

अगर​​ सीखने​​ बैठे​​ तो​​ सारा​​ जीवन​​ भी​​ कम​​ पड़ेगा​​ और​​ दुनिया​​ में​​ ऐसी​​ कोई​​ भी​​ चीज​​ नहीं​​ है​​ जिससे​​ कुछ​​ ना​​ कुछ​​ सीखना​​ को​​ ना​​ मिलता​​ हो।​​ हमारे​​ पूरे​​ लाइफ​​ में​​ हम​​ ऐसी​​ कितनी​​ सीखने​​ वाली​​ बातें​​ हैं​​ जिनको​​ अनदेखी​​ करते​​ हैं​​ उसमें​​ से​​ एक​​ है​​ वह​​ अबोधबालक​​ जो​​ कोऑपरेटेड​​ बनने​​ की​​ बहुत​​ बड़ी​​ सी​​ देता​​ है।​​ इस​​ बात​​ को​​ आपके​​ सामने​​ रखना​​ चाहिए​​ इस​​ बात​​ का​​ ख्याल​​ पार्क​​ में​​ घूमते​​ घूमते​​ मुझे​​ आया।​​ एक​​ बालक​​ को​​ देखकर​​ लगभग​​ जो​​ 1​​ साल​​ का​​ ही​​ होगा।​​ आप​​ सोच​​ रहे​​ होंगे​​ कि​​ ऐसी​​ कौन​​ सी​​ बात​​ मैं​​ आपको​​ बता​​ दूंगा​​ जो​​ आपको​​ कॉरपोरेटर​​ बनने​​ में​​ मदद​​ करेगा​​ एक​​ बालक​​ के​​ उदाहरण​​ को​​ लेकर।​​ पर​​ जो​​ मैंने​​ देखा​​ वह​​ हर​​ इंसान​​ दिन​​ में​​ कम​​ से​​ कम​​ 50​​ बार​​ देखता​​ होगा​​ अपने​​ छोटे​​ बच्चों​​ के​​ अंदर​​ पर​​ उस​​ चीज​​ को​​ नोटिस​​ नहीं​​ कर​​ पाता​​ है।​​ मैं पूरी तरह प्रयास करूंगा इस बात को समझाने की की एक अबोधबालक कैसे आपको कॉरपोरेटर बनने की सीख देता है। एक अबोधबालक खेलने के लिए कुछ नया सीखने के लिए जिस तरह का प्रयास करता है क्या एक कॉरपोरेटर उस तरह का प्रयास नहीं करता अपने कॉरपोरेशन को आगे बढ़ाने के लिए। हंड्रेड के हंड्रेड परसेंट चिल्ड्रन कुछ नया सीखने में खेलने में कामयाब हो जाते हैं पर कॉर्पोरेशन या कॉरपोरेटर क्यों नहीं? एक बच्चा चलने की समय कितनी बार गिरता है लेकिन प्रयास नहीं छोड़ता और फिर उठ कर चलता है। कॉरपोरेटर भी अपने कॉरपोरेशन को आगे बढ़ाने के लिए बार-बार प्रयास करता है। विफल प्रयासों के बाद भी प्रयास करके आगे ले जाने की कोशिश करता है।​​ 

अब बात करते हैं मुद्दे की क्यों एक अबोध बालक अपने सौ पर्सेंट प्रयासों में सफल होता है और कॉरपोरेटर नहीं। क्योंकि एक अबोधबालक में डर नहीं होता विफल होने से वह अपना पूरा का पूरा ध्यान सीखने और आगे बढ़ने में लगाता है ना कि डरने में। एक कॉरपोरेटर भी अपना पूरा प्रयास करता है। अपने कॉरपोरेशन को आगे बढ़ाने में लेकिन उसके प्रयास विफल इसलिए होते हैं क्योंकि उसमें डर होता है विफल होने का। हां दोस्त यह डर ही है जो हमें आपको और सब को सफल होने से रोकता है ​​ यह डर ही है जो हमारी कदमों को विकास की राह पर आगे बढ़ने से रोकता है। यह हमारा डर ही है जो हमारे विकास के लिए जो जरूरी कदम उठाने चाहिए थे वह हमें उठाने नहीं देता।​​ 

हां मेरे दोस्त यह डर ही है जो हमें विकास करने से रोकता है तो सबसे पहले डर को मारो क्योंकि डर के आगे ही जीत है जब तक अपने डर को पार करके आगे नहीं बढ़ आओगे तब तक जीत हासिल नहीं हमें डर से डरना नहीं है डर को जीतकर आगे बढ़ना है अपने विकास के लिए इसकी सीख वह अबोधबालक देता है जो 100 के 100 परसेंट सक्सेसफुल होता है अपने सारे काम में। 99% लोग ही अपने डर के कारण अनसक्सेसफुल है। चाहे डर शर्म का हो चाहे डर क्या कहेंगे लोग का हो चाहे डर किसी चीज का भी हो सकता है लेकिन डर ही है जो अनसक्सेसफुल करके रखा है 99% लोगों को।​​ 

और लास्ट में मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा मेरे दोस्त या तो सपने देखना छोड़ दो या डर को छोड़ दो। क्योंकि डर के रहते हुए आप अपने सपने को पूरा नहीं कर सकते क्योंकि वह डर आपके सपने को पूरा होने ही नहीं देगा।

फैसला आपका है कि डर के साथ असफल होकर जीना है या डर को पार करके सफल व्यक्ति बनकर जीना है।

अब​​ इस​​ डर​​ पर​​ हम​​ कैसे​​ काबू​​ पाएं​​ और​​ इस​​ डर​​ को​​ हराकर​​ कैसे​​ आगे​​ जाएं​​ यह​​ एक​​ अलग​​ विषय​​ है​​ इस​​ पर​​ हम​​ चर्चा​​ करेंगे​​ अगले​​ पोस्ट​​ पर।